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      गर्भवस्था में डबल मार्कर टेस्ट की क्या है प्रक्रिया, कीमत और लाभ ?

      गर्भवस्था में डबल मार्कर टेस्ट की क्या है प्रक्रिया, कीमत और लाभ ?

      जानिए डबल मार्कर टेस्ट की सम्पूर्ण जानकारी

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        डबल मार्कर टेस्ट कैसे गर्भावस्था में एक महिला व उसके बच्चे के साथ जुड़ा हुआ होता है और इसको करवाने के क्या फायदे है इसके बारे में इस समस्त लेख में चर्चा करेंगे, तो अगर आप भी इस टेस्ट को करवाने के बारे में सोच रहें है तो इसके लिए इस लेख के साथ अंत तक जुड़े रहें ;

        क्या है डबल मार्कर टेस्ट ?

        • डबल मार्कर टेस्ट की बात करें, तो यह गर्भधारण की पहली तिमाही पर किया जाने वाला रक्त परीक्षण होता है। 
        • इस परीक्षण को आमतौर पर गर्भधारण के 10वें और 13वें सप्ताह के बीच किया जाता है। इसमें एनोप्लॉयडी (गुणसूत्र की असामान्य मात्रा) गर्भावस्था का पता लगाया जाता है। 
        • खास बात डबल मार्कर टेस्ट में यह है कि इस परीक्षण को बिना किसी कट मार्क के किया जाता है। इस टेस्ट के जरिए डाउनग्रेड सिंड्रोम, एडवर्ड सिंड्रोम और पटाउ सिंड्रोम जैसे क्रोमोसोम (गुणसूत्र) का पता लगाया जाता है। 
        • क्रोमोसोम में किसी प्रकार की कमी होने पर भ्रूण के विकास में बाधा आ सकती है या फिर जन्म के बाद भविष्य में शिशु को किसी प्रकार की स्वास्थ्य समस्या का सामना करना पड़ सकता है। कई जीन के समावेश को क्रोमोसोम यानी गुणसूत्र बोला जाता है।

        डबल मार्कर टेस्ट को क्यों करवाया जाता है ?

        • अगर महिला की उम्र अगर 35 साल से ऊपर की हो।
        • पिछला बच्चा गुणसूत्र असमान्यता के साथ पैदा हुआ हो।
        • परिवार में कोई विशेष आनुवंशिक समस्या लगातार चली आ रही हो।
        • आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) विधि से गर्भधारण किया गया हो।
        • महिला टाइप-1 डायबिटीज की शिकार हो और इंसुलिन पर निर्भर रहती हो।

        अगर महिला आईवीएफ के जरिये गर्भवती हुई है तो इस टेस्ट का चयन महिला को पंजाब में आईवीएफ सेंटर से करवाना चाहिए।

        डबल मार्कर टेस्ट कैसे किया जाता है ?

        • डबल मार्कर टेस्ट मुख्य रूप से न्यूकल ट्रांसलुसेंसी स्कैन यानी एनटी पर आधारित होता है। शिशु के सिर के पीछे गर्दन के नीचे वाले एरिया में एक तरल पदार्थ होता है, जिसे न्यूकल ट्रांसलुसेंसी कहा जाता है। 
        • न्यूकल ट्रांसलुसेंसी स्कैन के दौरान इस तरल पदार्थ की मोटाई को चेक करके डाउन सिंड्रोम का पता लगाया जाता है। डाउन सिंड्रोम की आशंका पाए जाने पर डॉक्टर डबल मार्कर टेस्ट कराने की सलाह देते हैं।
        • साफ़ लफ्जो में समझे तो यह एक ऐसा ब्लड टेस्ट है, जिसे गर्भावस्था के दौरान होने वाले अल्ट्रासाउंड के साथ किया जाता है। इस टेस्ट की सहायता से चिकित्सक गर्भवती महिला के खून की जांच करके उसमें उपस्थित हार्मोन और प्रोटीन की जांच करते है। 
        • बता दें कि इस परीक्षण में जिस हार्मोन की जांच की जाती है, उसे फ्री बीटा एचसीजी (ह्यूमन क्रियोनिक गोनडोट्रोफिन) के नाम से संबोधित किया जाता है। 

        इस टेस्ट को अच्छे से करवाने के लिए आप महिलाओं की विशेषज्ञ डॉक्टर का भी चयन कर सकती है।

        डबल मार्कर टेस्ट के लाभ क्या है ?

        • इस टेस्ट से आपके बच्चे को डाउन सिंड्रोम की परेशानी सामने आती है, तो आपको एक और एडवांस टेस्ट कराने के लिए सोचने और अपने डॉक्टर से परामर्श लेने की जरूरत हो सकती है।
        • आप डायग्नोस्टिक टेस्ट से गुजर सकते है, अगर यह टेस्ट पॉजिटिव आता है।
        • अगर आपके भ्रूण के इस टेस्ट के बाद पॉजिटिव रिजल्ट आया है और आप इसको सही साबित करने के लिए डायग्नोस्टिक टेस्ट के लिए जाते है तो आप गर्भपात करवा सकते है।

        डबल मार्कर टेस्ट की लागत क्या है ?

        इसकी लागत 4 से 15 हजार तक आ सकती है। बाकि इसकी लागत हॉस्पिटल कितना बड़ा है इस बात पर भी निर्भर करता है।

        सुझाव :

        आप आईवीएफ के जरिये माँ बनी है तो इसके लिए आप इस टेस्ट को जेम हॉस्पिटल एन्ड आईवीएफ सेंटर से भी करवा सकती है। 

        निष्कर्ष :

        इस टेस्ट को करवाना आपके व आपके बच्चे के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है, इसलिए जरूरी है की आप इस टेस्ट को किसी अनुभवी डॉक्टर और प्रसिद्ध हॉस्पिटल से करवाए।

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