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      गर्भावस्था में डबल मार्कर टेस्ट क्या है और इसे क्यों किया जाता है ?

      गर्भावस्था में डबल मार्कर टेस्ट क्या है और इसे क्यों किया जाता है ?

      जानिए गर्भावस्था में डबल मार्कर टेस्ट की महत्वपूर्ण बातें !

        Quick Inquiry

        गर्भावस्था हर महिला की जिंदगी में बहुत ही खुशी का पल होता है, और इस खुशी के साथ जरूरी है की महिला भी शारीरिक परेशानियों से दुखी न हो, वही महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान किसी भी तरह की परेशानी न आए इसके लिए हम आज के लेख में डबल मार्कर टेस्ट के बारे में चर्चा करेंगे और ये टेस्ट कैसे महिलाओं की प्रेगनेंसी और गर्भावस्था के दौरान उनका ध्यान रखने में सहायक है ये भी जानेगे;

        क्या है डबल मार्कर टेस्ट ?

        • पहली तिमाही की स्क्रीनिंग में डबल मार्कर टेस्ट शामिल होता है, जिसे डबल मार्कर परीक्षण कहा जाता है। 
        • इस टेस्ट में भ्रूण की बीमारियों या जन्मजात समस्याओं को देखने के लिए के लिए फर्स्ट ट्राइमेस्टर के दौरान किया जाता है। इस टेस्ट के दौरान दो प्रमुख हार्मोन के स्तर की जाँच की जाती है, जिसका नाम है फ्री बीटा ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन और गर्भावस्था से जुड़े प्लाज्मा प्रोटीन-ए। 

        इस टेस्ट का चयन कब और कैसे करना चाहिए इसके बारे में जानने के लिए आपको गायनेकोलॉजिस्ट डॉक्टर का चयन करना चाहिए।

        गर्भवती महिला को डबल मार्कर टेस्ट का चयन कब करना चाहिए !

        • अधिकांश गर्भवती महिलाओं के लिए डबल मार्क टेस्ट एक नियमित डायग्नोस्टिक असेसमेंट है। हालांकि, कुछ महिलाओं को जन्मजात विकलांग बच्चों के होने का अधिक खतरा होता है, जिसके लिए डबल मार्कर टेस्ट की आवश्यकता होती है।
        • महिला की उम्र 35 वर्ष से अधिक है या जैसे-जैसे मां की उम्र बढ़ती है, भ्रूण में जन्मजात असामान्यताएं होने की संभावना अधिक होती है।
        • यदि मां को डायबिटीज है या इंसुलिन रेजिस्टेंस का पारिवारिक इतिहास है, तो भ्रूण में क्रोमोसोमल एब्नार्मेलिटीज मिल सकती है। इसलिए गर्भावस्था के तीसरे महीने में महिला को अपनी जाँच डबल मार्कर टेस्ट से करवाना चाहिए। 

        अगर आप आईवीएफ उपचार के जरिए गर्भवती हुई है तो इसकी जाँच के लिए आपको पंजाब में आईवीएफ सेंटर का चयन करना चाहिए।

        डबल मार्कर टेस्ट कैसे किया जाता है ?

        • एक रक्त का नमूना और एक अल्ट्रा-साउंड परीक्षा एक डबल मार्कर परीक्षण का गठन करती है। मुक्त बीटा एचसीजी (मानव कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन) और पीएपीपी-ए दो मार्कर है जिनका डबल मार्कर परीक्षण में विश्लेषण किया गया है।
        • इसके अलावा पीएपीपी-ए प्लाज्मा प्रोटीन शरीर का एक महत्वपूर्ण घटक है। डाउन सिंड्रोम का उच्च जोखिम कम प्लाज्मा प्रोटीन स्तर से जुड़ा हुआ है। परीक्षण के परिणाम सकारात्मक, उच्च जोखिम और नकारात्मक के रूप में जांचे जाते है।

        डबल मार्कर टेस्ट क्यों किया जाता है ?

        • पहली तिमाही में डबल मार्कर टेस्ट और एनटी स्कैन के साथ स्क्रीनिंग की सिफारिश की जाती है, लेकिन इसकी आवश्यकता होती नहीं है।
        • अगर आपकी उम्र 35 से अधिक है या आपका क्रोमोसोमल असामान्यताओं का संभावित रूप से बढ़ा हुआ जोखिम है, जैसे कि विशिष्ट विकारों का पारिवारिक इतिहास। उस स्थिति में, आपको स्क्रीनिंग कराने पर विचार करना चाहिए।
        • याद रखें कि यह परिणाम आपको केवल यह बता सकता है कि क्या आप ट्राइसोमीज़ के लिए अधिक जोखिम में हैं, न कि क्यों। कहना का तात्पर्य ये है की इसमें आपके शिशु की असामान्यता की स्थिति निश्चित रूप से निर्धारित नहीं की जा सकती।

        डबल मार्कर टेस्ट की लागत क्या आती है ?

        • इस टेस्ट की लागत इस बात पर निर्भर करती है की आप कहा से अपना इलाज करवाते है और हॉस्पिटल कितना बड़ा है और किस स्थान पर ये हॉस्पिटल स्थित है। 
        • डबल मार्कर टेस्ट की कीमत रुपये के बीच होती है। जैसे 2,500 रूपए से लेकर 3,500, रूपए तक। वहीं इसकी लागत हर हॉस्पिटल में अलग-अलग है।

        सुझाव :

        अगर आप आईवीएफ उपचार के माध्यम से गर्भवती हुई है इसके लिए आपको जेम हॉस्पिटल एन्ड आईवीएफ सेंटर से इस टेस्ट को करवाने के बारे में सोचना चाहिए।

        निष्कर्ष :

        डबल मार्कर टेस्ट की जरूरत किसे होती है और इसे क्यों करवाया जाता है, इसके बारे में उम्मीद करते है की आपने जान लिया होगा, वही किसी भी तरह की दवाई लेते समय या गर्भावस्था के दौरान टेस्ट करवाते समय एक बार डॉक्टर से जरूर सलाह लें।

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